Kumbhalgarh Fort : कुम्भलगढ़ किला राजस्थान में चित्तौड़गढ़ किले के बाद दूसरा सबसे बड़ा किला है। यह उदयपुर से 64 किलोमीटर दूर राजसमंद जिले में पश्चिम की ओर अरावली की पहाड़ियों पर स्थित है।
पूरी 13 पहाड़ियों पर बने इस किले की समुद्र तल से ऊंचाई 1,110 मीटर है। इस किले की दीवार 36 किलोमीटर तक फैली है जो 7 मीटर चौड़ी है, यह दीवारें इतनी बड़ी और लंबी हैं कि विश्व में चीन की दीवार के बाद दूसरी सबसे बड़ी और लंबी दीवारों में इसी का नाम आता है। किले की निगरानी के लिए किसी जमाने में इस दीवार के ऊपर कई पैदल सैनिक और 150 से अधिक घुड़सवार सैनिक दौड़ा करते थे। मेवाड़ की आंख कहे जाने वाले इस कुंभलगढ़ दुर्ग को अजयगढ़ भी कहा जाता है। क्योंकी इस पर विजय प्राप्त करना बहुत ही दुष्कर कार्य माना जाता था।
कुम्भलगढ़ किले का इतिहास | Kumbhalgarh Fort History
कुम्भलगढ़ किले का निर्माण 15 वीं शताब्दी में महाराणा कुम्भा के द्वारा कराया गया था। यह राजस्थान का दूसरा सबसे बड़ा किला है और इस विशाल किले को बनाने में 15 सालों का समय लगा था। महाराणा कुम्भा के मेवाड़ राज्य का विस्तार बहुत ही अधिक था। उनके पास पूरे 84 किले थे। जिसमें से 32 किलो का निर्माण महाराणा कुम्भा ने स्वयं करवाया था। उन सभी किलों में से कुम्भलगढ़ किला सबसे बड़ा किला था। कुम्भलगढ़ किले के प्रमुख शिल्पकार, वास्तुविद ‘मण्डन जी’ थे।
किले की दीवारों को जब बनाना शुरू किया गया तब कई परेशानियां आने लगीं, दिन में दीवारों को बनाया जाता था और रात में दीवारें अपने आप गिर जाती थीं, जब कई बार ऐसा हुआ तब महाराणा कुम्भा ने स्थानीय लोगों से इसका कारण पूछा तो स्थानीय लोगों ने उन्हें भैरव मुनि के बारे में बताया, भैरव मुनि ने किले के निर्माण में आने वाली बाधाओं का कारण देवी-देवताओं की शक्तियों को बताया और कहा कि नरबलि ही इसका एकमात्र उपाय है, जब तक कोई मनुष्य बिना किसी लोभ-लालच के स्वयं की इच्छा से बलिदान नहीं देगा तब तक किले का निर्माण असंभव है।
जब कोई स्वयं की इच्छा से बलि देने वाला कोई व्यक्ति नहीं मिला तब महाराणा कुम्भा और अधिक चिंतित हो गए तब अंत में स्वयं भैरव मुनि बलिदान के लिए आगे आते हैं और कहते हैं कि जहां से वह पहाड़ी चढ़ना शुरू करें वहां से किले की सुरक्षा दीवार को बनाना शुरू जाए और अंत में जिस स्थान पर पहुंचे वहां पर किले का निर्माण किया जाए। भैरव मुनि ने जिस स्थान से पहाड़ी चढ़ना आरम्भ किया वहां पर किले की दीवार के पहले द्वार को बनाया गया जिसे भैरव पोल के नाम से जाना जाता है, थोड़ा सा आगे चलने पर तलवार से उनकी गर्दन को काट दिया जाता है और उनका सिर जिस स्थान पर गिरता है वहां पर भैरव मुनि का छोटा सा मंदिर बनाया जाता है।
सिर कटने के बाद भी भैरव मुनि पहाड़ी के ऊपर चढ़ते गए और लगभग 700 मीटर पहाड़ी के ऊपर चढ़ने के बाद उनका शरीर गिरता है और वहीं पर कुम्भलगढ़ किले का निर्माण किया जाता है। जिस जगह पर भैरव मुनी का शरीर गिरता है उसे कटारगढ़ नाम दिया जाता है।
कुम्भलगढ़ किले की संरचना | Structure of Kumbhalgarh Fort
कुम्भलगढ़ किला अरावली पर्वत श्रंखला की 13 छोटी-बड़ी पहाड़ियों के ऊपर कुछ इस प्रकार स्थित है कि 500 मीटर दूर से यह दिखाई भी नहीं पड़ता परन्तु किले के ऊपर से तो आप कई किलोमीटर तक नजर दौड़ा सकते हैं
कुम्भलगढ़ किले में प्रवेश करने के लिए इसकी विशाल दीवार में सात बड़े दरवाजे हैं। इनमें से सबसे बड़े दरवाजे राम पोल तथा हनुमान पोल हैं , भैरव पोल, हल्ला पोल, पाघरा (पगड़ी) पोल, निम्बू पोल एवं पूनम पोल आदि किले के अन्य दरवाजे हैं।
इन सातों दरवाजों में से किसी भी दरवाजे से प्रवेश करने पर घुमावदार रास्ते मिलते हैं दरवाजों के तुरंत बाद से रास्ते दाएं या बाएं ओर मुड़े हुए हैं एवं किसी भी दरवाजे से प्रवेश करने पर कोई और अन्य दरवाजा नजर भी नहीं आता। दरवाजों की यह जटिल संरचना आक्रमणकारियों को भटकाने के लिए बनाई गई थी परंतु आक्रमणकारी कभी इन दरवाजों के अंदर प्रवेश तक नहीं कर पाए।
कुम्भलगढ़ पर हुए आक्रमण | Attack on Kumbhalgarh
कुम्भलगढ़ को अजय दुर्ग भी कहा जाता है इस पर 17 बार आक्रमण हुए परन्तु इसे कभी कोई जीत नहीं पाया। कुम्भलगढ़ पर जो सबसे मुख्य आक्रमण हुआ था वह 1576 के हल्दीघाटी युद्ध के बाद हुआ था। अकबर महाराणा प्रताप से इतना अधिक डरता था कि वह कभी महाराणा प्रताप के सामने नहीं आया, हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर अपनी ओर से जयपुर के राजा मानसिंह को युद्ध करने के लिए भेजता है जब राजा मानसिंह महाराणा प्रताप के बीच भीषण युद्ध होता है उस युद्ध में हार-जीत का कोई संतोषजनक निर्णय नहीं निकलता परंतु जन-धन की क्षति दोनों ओर से बहुत अधिक होती है।
हल्दीघाटी के युद्ध के बाद महाराणा प्रताप कुम्भलगढ़ किले में आकर रुकते हैं तथा कुछ समय बाद किले की सारी जिम्मेदारी अपने मामा के पुत्र भान सोनगरा जी को सौंपकर डूडर के पास चूलिया गांव चले जाते हैं और वहां जाकर भामाशाह है और उनके भाई ताराचंद जी से मिलकर धनराशि एकत्रित करते हैं और एक फिर से सेना एकत्रित करने में जुट जाते हैं। इसी बीच अकबर को पता चलता है कि महाराणा प्रताप कुम्भलगढ़ में रुके हुए हैं तब अकबर शहबाज खान को नया सेनापति नियुक्त करके कुम्भलगढ़ किले पर कब्जा करने और महाराणा प्रताप को बंदी बनाने के लिए भेजता है।
शहबाज खान जब कुम्भलगढ़ पर आक्रमण करने के लिए आता है तो वह अरावली की पहाड़ियों में खो जाता है उसे कुम्भलगढ़ का रास्ता तक नहीं मिलता तब वह कुम्भलगढ़ में सब्जी पहुंचाने वाली तीन मालिनों को बंदी बनाता है और जबरन उनसे किले का रास्ता पूछकर किले तक पहुंच जाता है। शहबाज खान को जानकारी थी कि महाराणा प्रताप किले के अंदर ठहरे हुए हैं वह जानता था कि महाराणा प्रताप को जीतना बहुत ही दुष्कर कार्य है इसलिए वह किले से थोड़े ही दूर अपने तोप-गोले जमा कर अपने सैनिकों को पानी की व्यवस्था के लिए वहां पर बावड़ी खुदवाता है जो आज भी है इसे बादशाह है बावड़ी के नाम से जाना जाता है।
पानी की व्यवस्था करने के बाद शहबाज खान किले पर आक्रमण शुरू कर देता है परन्तु महाराणा प्रताप के ममेरे भाई भान सोनगरा और उनके सैनिक मुंहतोड़ जबाब देते हैं और शहबाज खान को वापस भागने पर मजबूर कर देते हैं। कुछ इतिहासकारों के अनुसार शहबाज खान कुम्भलगढ़ में जाने वाले पानी में जहर मिलाकर कुम्भलगढ़ पर कब्जा तो कर लेता है परन्तु यह कब्जा ज्यादा समय तक नहीं रह पाता।
इसके बाद 1582 में महाराणा प्रताप और शहबाज खान के बीच कुंभलगढ़ से 60 किलोमीटर दूर दिवेर के जंगलों में भयंकर युद्ध होता है इस युद्ध में महाराणा प्रताप शहबाज खान को मौत के घाट उतार देते हैं।
कुम्भलगढ़ में हुई थी महाराणा कुम्भा की हत्या | Maharana Kumbha was killed in Kumbhalgarh
महाराणा कुम्भा का सबसे बड़ा पुत्र था उदयकरण जिसको ऊदा के नाम से भी जाना जाता है वह भली भांति जानता था कि महाराणा कुम्भा अजेय योद्धा हैं उन्हें ना तो कोई मार सकता है और ना ही कोई हरा सकता है। उदयकरण को राजगद्दी का लालच आ जाता है।
जब महाराणा कुम्भा अपने कुम्भा महल से लगभग 2 किलोमीटर नीचे की ओर स्थित मामादेव जी मंदिर में एकलिंग जी के सामने संध्यावन्दन कर रहे होते हैं तब उदयकरण पीछे महाराणा कुम्भा की हत्या कर देता है, “एक पुत्र द्वारा अपने पिता की हत्या ऐसी” घटना मेवाड़ के इतिहास में पहली बार हुई थी इस घटना को मेवाड़ के इतिहास में सबसे बड़ा कलंक कहा गया।
महाराणा कुम्भा की हत्या के बाद उदयकरण स्वयं को शासक घोषित कर देता है परन्तु वह ज्यादा समय तक शासन नहीं कर पाता इस घटना के कुछ दिन बाद ही बिजली गिरने से उदयकरण की मृत्यु हो जाती है। इसके बाद रायमल जी राणा बनते हैं इन्हीं रायमल जी के तीसरे पुत्र थे राणा सांगा थे जिन्हें 80 घावों का योद्धा कहा जाता है। राणा सांगा को मेवाड़ के सबसे शक्तिशाली योद्धाओं में गिना जाता है।
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कुम्भलगढ़ किले का महत्व | Importance of Kumbhalgarh Fort
कुम्भलगढ़ किले का संस्कृतिक महत्व इसके इतिहास, कला, संस्कृति और प्राकृतिक सौंदर्य में समाहित है। यह भारतीय इतिहास और संस्कृति के प्रतीक के रूप में एक अमूल्य धरोहर है।
कुम्भलगढ़ किला कई ऐतिहासिक घटनाओं के लिए प्रसिद्ध है। इसे महाराणा प्रताप की जन्मस्थली माना जाता है, अगर सांस्कृतिक महत्व की बात करें कुम्भलगढ़ किले के भव्य मंदिर, महल और किले के अवशेष संस्कृति के प्रमुख स्रोतों में से एक हैं। यह इस धार्मिक स्थल को एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल बनाता है। कुंभलगढ़ किला वास्तुकला के लिए भी प्रसिद्ध है, कुम्भलगढ़ किले की स्थिति अरावली पर्वत श्रृंखलाओं के बीच होने से इसका प्राकृतिक सौंदर्य का भी अनूठा है। इसके चारों ओर का सुहावना दृश्य यह इस ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल को एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल बनाता है। कुम्भलगढ़ में अन्यत्र आयोजित होने वाले स्थानीय मेलों और त्योहारों का भी अपना विशेष महत्व है। यहां समय-समय पर धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन होते हैं, जिनमें स्थानीय लोग भाग लेते हैं और अपनी परंपरागत विरासत को जीवंत रखते हैं।
कुम्भलगढ़ किले के अद्भुत रंगमंच पर विभिन्न सांस्कृतिक और कला समारोह आयोजित होते हैं। यहां कई राजस्थानी नृत्य और गीत संध्याएं आयोजित की जाती हैं जो लोगों को आकर्षित करती हैं। यहां के रंगमंच पर होने वाले शो दर्शकों को आकर्षित करने के साथ-साथ उन्हें राजस्थानी संस्कृति के बारे में जानने का भी अवसर प्रदान करते हैं।
कुम्भलगढ़ किले में आकर्षक स्थल | Kumbhalgarh Fort Attractions
कुम्भलगढ़ का प्रत्येक कोना एक अनूठा आकर्षण रखता है परन्तु यहां के बादलमहल की शानदार वास्तुकला और बादलों से भी ऊंची गगनचुंबी दीवारें इसे और अधिक भव्य दर्शनीय स्थल बनातीं हैं साथ ही इसमें बहुत सारे मंदिर, पार्क और महल भी बनाए गए हैं जो कुम्भलगढ़ को बहुत ही सुंदर और आकर्षक बनाते। यहाँ पर मंदिरों की संख्या 360 से भी ज्यादा है, जिसमें से सबसे महत्वपूर्ण मंदिर भगवान शिव का है जिसे नीलकंठ महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है यहां पर बहुत ही बड़ा शिवलिंग स्थापित किया गया है विशाल और सुन्दर शिवलिंग को देखकर पर्यटक मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। इसके साथ ही यहां पर जैन मंदिर भी मौजूद हैं। कुम्भलगढ़ किले में हिंदू मंदिरों के साथ जैन मंदिरों की संख्या भी काफी अधिक है।
Kumbhalgarh Fort Highlights
कुभ्भलगढ़ कैसे पहुंचे?
कुम्भलगढ़ किले तक पहुंचने के लिए रेल, बस और निजी वाहन के विकल्प उपलब्ध हैं। निकटतम रेलवे स्टेशन उदयपुर रेलवे स्टेशन है, जिससे किले तक टैक्सी या बस से आसानी से पहुंचा जा सकता है।
कुम्भलगढ़ में रुकने की जगह
कुम्भलगढ़ किले के आसपास कई होटल और धर्मशालाएं उपलब्ध हैं। आप अपनी आवश्यकतानुसार विभिन्न विकल्पों में से चुन सकते हैं। इसे एक अद्भुत और यादगार अनुभव बनाने के लिए, राजस्थान के इस शानदार ऐतिहासिक सम्पदा का आनंद लेने के लिए कुम्भलगढ़ किला की यात्रा ज़रूर करें।
राजस्थान का इतिहास और इससे जुड़े किस्से बड़े ही रोचक हैं इसलिए पर्यटक इसकी ओर खिचे चले आते हैं। यहां पर बने हुए किले और महल पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। वैसे तो यहाँ पर बहुत सारे किले लेकिन इन सभी किलों में कुभलगढ़ किले का अपना ही अलग आकर्षण है। जब तक कुम्भलगढ़ किले की यह खूबसूरत कहानी राजस्थान के प्रमुख धरोहरों में से एक बनी रहेगी, आपकी उत्सुकता और रूचि बनी रहेगी। इस ऐतिहासिक स्थल के सौंदर्य, सांस्कृतिक महत्व, और भव्य भवनों को देखकर, आप निश्चित ही अपने आपको खुशनुमा महसूस करेंगे।
FAQs (पूछे जाने वाले प्रश्न)
कुम्भलगढ़ किले का निर्माण किसने किया था?
उत्तर: कुम्भलगढ़ किले का निर्माण महाराजा कुम्भा ने 15वीं सदी में किया था।
कुम्भलगढ़ किले की ऊँचाई कितनी है?
उत्तर: कुम्भलगढ़ किले की समुद्र तल से ऊँचाई 3600 फुट से भी अधिक है।
कुम्भलगढ़ घूमने कब जाएं?
उत्तर: कुम्भलगढ़ की यात्रा वर्ष के किसी भी महीने में की जा सकती है परंतु अक्टूबर से फरवरी तक सुहावना ठंड का मौसम होने की वजह से यहां पर्यटकों का जमावड़ा अधिक होता है तथा मार्च से जून के बीच गर्मियों के मौसम में कुम्भलगढ़ का सफर थोड़ा थका देने वाला होता है। गर्मियों के दौरान यहां का तापमान 42 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है।
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