चित्तौड़गढ़ त्याग और बलिदान का प्रतीक…. वही चित्तौड़गढ़ जो कभी मेवाड़ की राजधानी हुआ करता था। वही चित्तौड़गढ़ जो कभी किसी के अधीन नहीं रहा। जिसकी मिट्टी के कण-कण से शौर्य और बलिदान की खुशबू आती है। जो शक्ति, भक्ति, त्याग और बलिदान की धरती के रूप में जाना जाता है। वही चित्तौड़गढ़ जिसके आंचल में महाराणा प्रताप खेले। जहां सती मीराबाई ने कृष्ण भगवान की भक्ति में अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया, वही चित्तौड़गढ़ जिसने तीन बार जौहर कुण्ड की आग में झुलसती हजारों सतियों की वेदना सुनी। चित्तौड़गढ़…. जिसमें समाहित हैं शौर्य, वीरता, प्रेम और अटूट वफादारी की अनगिनत गाथाएं।
चित्तौड़गढ़ की स्थापना
चित्तौड़गढ़ की स्थापना आज से लगभग 1500 साल पहले मौर्य वंश के शासक चित्रांगन मौर्य ने की थी। उस समय इसे चित्रकूट नाम दिया गया था। जब खिलजी के बेटे खिज्र खां ने इस पर शासन किया तब चित्रकूट से नाम बदलकर खिज्राबाद कर दिया था। उसके बाद राणा कुम्भा के शासन काल में इसका नाम चित्तौड़गढ़ कर दिया गया।
चित्तौड़गढ़ दुर्ग एशिया महाद्वीप का सबसे बड़ा दुर्ग है। जो 13 किलोमीटर की परिधि और 700 एकड़ जमीन के ऊपर में बसा हुआ है। एक समय इसके अंदर छोटे बड़े करके 113 मंदिर हुआ करते थे, 84 पानी के कुंड बने हुए थे और 8 भव्य महल बने हुए थे। लेकिन जब मुगलों ने चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण किया तो इसे बुरी तरह से तहस-नहस कर दिया।
चित्तौड़गढ़ का इतिहास
अगर आज चित्तौड़गढ़ दुर्ग की बात जाए तो देखने में एक खंडहर सा ही बचा है जो भारत के गौरवमयी इतिहास और विदेशी आक्रांताओं की क्रूरता की कहानियां सुना रहा है।
सातवीं सदी से लेकर नौवीं सदी तक चित्तौड़गढ़ पर चन्द्रगुप्त मौर्य के वंशजों ने राज किया और उसके बाद सूर्यवंशी राजाओं का राज रहा जिनमें बप्पारावल जी, राणा सांगा जी, राणा रतन सिंह जी, महाराणा कुम्भा जी जैसे पराक्रमी राजाओं ने राज़ किया। इनमें सबसे ज्यादा राज राणा कुम्भा ने 35 साल राज किया, जिन्होंने कुम्भलगढ़ बसाया।
9वीं शताब्दी से लेकर 16वीं शताब्दी तक चित्तौड़गढ़ के ऊपर मुगलों ने 27 बार आक्रमण किया, जिसमें से 24 आक्रमण राजपूत सेना ने जीते और तीन बार मुगल विजयी रहे, और इन्हीं तीन पराजित मुकाबलों में से दो बार मेवाड़ राजवंश की महारानियों ने अपनी हजारों सखियों के साथ जौहर किया।
चित्तौड़गढ़ की संरचना
सात दरवाजे
अगर चित्तौड़गढ़ की संरचना देखी जाए तो किले के अंदर जाने के लिए सात दरवाजे बने हुए हैं। जिनके नाम हैं पांडव पोल, भैरव पोल, हनुमान पोल, गणेश पोल, लक्ष्मण पोल, और श्रीराम पोल। पारम्परिक कलाकृतियों के साथ इन सात दरवाजों का निर्माण राणा कुम्भा ने करवाया था। जो मुख्य दरवाजा है वह युद्ध के मैदान की तरफ जाता है।
कुम्भा महल
किले के ऊपरी हिस्से में एक महल दिखाई पड़ता है इसे कुम्भा महल कहा जाता है, ये वही महल है जिसमें महाराणा प्रताप के पिता उदय सिंह का जन्म हुआ था और यह वही स्थान है जहां माँ पन्नाधाय ने राणा उदयसिंह की रक्षा के लिए अपने बेटे चंदन सिंह का बलिदान दिया था और अपने बेटे की मौत के वियोग को अपने सीने में दबाकर राणा उदय सिंह को लेकर कुम्भलगढ़ पहुँच गई थीं। इस महल में प्रवेश करते ही एक अस्तबल पर नजर पड़ती है, जहाँ राणा कुम्भा के सात घोड़े बंधा करते थे और सामने ही झरोखे (बड़ी खिड़कियां) बने हुए हैं। जहाँ से राणा जी भगवान सूर्य के दर्शन करने के बाद ही अन्न जल ग्रहण करते थे और जिस दिन मौसम खराब होने की वजह से सूरज नहीं निकलता था तो उस दिन के लिए 50 किलो सोने का सूरज बनाया गया था, जिसकी पूजा करके ही राणा जी अन्न का दाना ग्रहण करते थे।
इस महल में दो भागों में बना हुआ है, एक भाग को जनाना महल और दूसरे भाग को मर्दाना महल के नाम से जाना जाता है, जिसमें से जनाना महल में रानियाँ रहती थीं और मर्दाना महल में पुरुष रहा करते थे। इसी में महल में एक सुरंग बनी हुई है, जो सीधा गौमुख कुंड में जाकर खुलती है, जहां से रानियाँ जाकर स्नान किया करती थीं।
चित्तौड़गढ़ के जौहर
पहला जौहर
कुंभा महल से आगे जौहर स्थल के रूप में एक स्थान दिखाई देता है। 13 वीं शताब्दी के में अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण किया था। वह चित्तौड़गढ़ की जटिल संरचना के कारण किले पर चढ़ाई करके युद्ध नहीं जीत सकता था तो उसने किलो के चारों तरफ से छह महीने तक घेरे रखा। बाहर से आने वाले राशन को उसने बंद कर दिया था। परिणाम स्वरूप चित्तौड़गढ़ के अंदर रहने वाली जनता भूख प्यास से मरने लगी। जब ये खबर राणा रतन सिंह को लगी तो उन्होंने से संधि करनी चाही। लेकिन खिलजी धोखे से उनको बंदी बना लेता है जिसके बाद में गोरा और बादल उन्हें छुड़ा लेते हैं। लेकिन राजपूत सेनाएं युद्ध हार जाती है और उस समय मेवाड़ की महारानी पद्मनी अपनी 16,000 सखी-सहेलियों और दासियों के साथ स्वयं को अग्निकुंड के हवाले कर देती है और चित्तौड़गढ़ की मिट्टी में समा जाती है
दूसरा जौहर
दूसरा जौहर हुआ 1534 में हुआ जबबहादुर शाह ने आक्रमण किया उस समय रानी कर्णावती 13,000 औरतों के साथ जौहरकुण्ड में समाहित हो गयीं। जौहरकुण्ड पहले एक गहरे कुंड की तरह दिखाई पड़ता था, लेकिन आज वहाँ मिट्टी डालकर गार्डन का रूप दे दिया गया है। सिर्फ एक हवन कुंड रखा है। जहां एक निश्चित देने मेवाड़ के वर्तमान राजा कर हवन करके जौहरकुण्ड में समाहित सतियों की आत्मा शांति के लिए प्रार्थना करते हैं।
तीसरा जौहर
इसके बाद तीसरा आक्रमण अकबर ने किया था। वहीं अकबर जिसे आप ग्रेट अकबर के नाम से जानते हैं, उस समय मेवाड़ के राजा थे महाराणा प्रताप के पिता उदयसिंह जी थे। वह चित्तौड़गढ़ का किला उनके सेनापति जयमल पत्ता के हाथों सौंपकर वहां से उदयपुर के लिए चले गए थे। उसी समय उन्होंने उदयपुर नगर बसाया था और जयमल पत्ता ने अकबर से लड़ाई करी और इसमें 8000 महिलाओं ने जौहर किया था। और इस युद्ध के बाद अकबर ने चित्तौड़गढ़ की धरती पर जो रक्तपात मचाया था, उसने आमजन को मार मारकर इस मिट्टी का रंग लाल कर दिया था। चित्तौड़गढ़ इस दुर्दांत और इस आततायी राजा को कभी भूल नहीं सकता।
विजय स्तम्भ
जौहर कुंड के पास ही विजय स्तम्भ भी दिखाई पड़ता है जिसका निर्माण महाराणा कुम्भा ने करवाया था। महाराणा कुम्भा ने गुजरात और मालवा दोनों जीतने के बाद विजय स्तम्भ का निर्माण करवाया था। इसको बनने में पूरे 10 साल का समय लगा। उस समय इसको बनाने में 90,00,000 का खर्च आया था। इसकी ऊँचाई 122 फिट है। इसके अंदर कुल 157 सीढ़ियां बनी हुई हैं और यह नौ मंजिला है तथा इसका आकार भोले नाथ के डमरू के समान है। नीचे से तीन मंजिल तक चौड़ा है, बीच में पांच मंजिल सकरा है और ऊपर सिर्फ दो मंजिल फिर से चौड़ा है। राजस्थान पुलिस के बाएं हाथ पर इसी विजयस्तम्भ का चिन्ह बना होता है। विजय स्तंभ के आसपास बहुत से टूटे-फूटे खंडहर दिखाई पड़ते हैं, यह सब चित्तौड़गढ़ के उस समय के मंदिर थे, जिनको अलाउदीन खिलजी ने रानी पद्मिनी के नहीं मिलने पर तोड़ दिया था और बाद के आक्रमणकारियों ने अन्य बचे हुए मंदिर भी तोड़ दिए
जल महल
थोड़ा आगे चलने पर पानी के बीच में स्थित एक महल दिखाई पड़ता है जिसे पद्मिनी महल कहा जाता है और इसे समर पैलेस के नाम से भी जाना जाता है। गर्मी के समय में चार महीने रानी पद्मनी इसी महल में रहती थी, क्योंकि उस समय पंखे या कूलर तो होते नहीं थे इसलिए गर्मी के कारण यह जल महल बनाया गया था। वहीं पर एक और महल का ढांचा देखने को मिलता है। इसमें रानी पद्मनी अपनी दासियों के साथ रहा करती थीं यह महल तीन मंजिला हुआ करता था लेकिन आज खंडहर है।
रानी पद्मनी जल महल में नाव के द्वारा जाया करती थी। और उस समय लकड़ी की नाव होती थी। आज के समय में मेरे यहाँ सरकार ने गार्डन बनवा दिया है। जिसमें हर तरह के गुलाब के फूल देखने को मिल जाएंगे।
थोड़ा आगे चलने पर भीमकुंड दिखाई देता है। ऐसा कहा जाता है कि राजा महाराजा के शासन से पहले महाभारत काल में यहां पांडव आये थे और इस जगह पर भीम ने अपने पैर से पानी निकाल दिया था। इसको भीमकुंड नाम से जाना जाता है। थोड़ा आगे चलने पर सूरजपोल दिखाई पड़ता है जो दुर्ग में आने का पुराना रास्ता भी है। जब 1303 में खिलजी ने आक्रमण किया था। तब इसी गेट पर चढ़ाई की थी। इस रास्ते पर भी सात गेट बने हुए हैं। जब खिलजी ने आक्रमण किया था तब उसने एक एक करके सारे गेट तहस नहस कर दिए थे, जिसमें से छह गेट पूरी तरह से टूटे हुए हैं। लेकिन जो सूरजपोल गेट को खिलजी नहीं तोड़ सका। सूरज की सबसे पहले किरण इसी गेट पर पड़ती है और इसका नाम इसी वजह से सूरजपोल है। इसके सामने जो आपको खुला मैदान दिखाई देता है या यूं कहें कि यहां खुला मैदान हुआ करता था। लेकिन आज यहाँ आसपास कुछ बस्तियां बस गई हैं जिसकी वजह से वहाँ लोग खेती करने लग गए है। गेट पर बहुत सी बड़ी-बड़ी कीलें लगी हुई दिखाई देती हैं जिनको अंकुश कहा जाता है। जब आक्रमण किया जाता था तब हाथी को मदिरा पिलाकर पागल किया जाता था और उससे गेट को तुड़वाया जाता था, लेकिन अंकुश लगे होने के कारण खिलजी के हाथी गेट को तोड़ न सके।
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Chittorgarh Highlights
चित्तौड़गढ़ कैसे पहुंचे
चित्तौड़गढ़ भीलवाड़ा और उदयपुर के मध्य स्थित हू। मेरे सबसे निकटतम हवाई अड्डा डबोक एअरपोर्ट जो कि उदयपुर में स्थित है, जहाँ से चित्तौड़गढ़ की दूरी लगभग 90 किलोमीटर है
आप ट्रेन से भी आसानी से पहुंच सकते हैं। चित्तौड़गढ़ अपने आप एक रेलवे जंक्शन है। जहां लगभग भारत के हर शहर से ट्रेन उपलब्ध है।
चित्तौड़गढ़ का खान-पान
अगर मैं मेरे स्थानीय लोगों के खानपान की बात करें तो यहाँ का सबसे प्रसिद्ध खाना दाल बाटी और चूरमा है जो काफी स्वादिष्ट भोजन होता है और मेवाड़ के लोग अपने अतिथि स्वागत के लिए भी विश्व प्रसिद्ध है।
उपयुक्त मौसम
चित्तौड़गढ़ के उपयुक्त मौसम की बात करो तो गर्मियों में यहां का वातावरण अधिक गर्म होता है और उस दौरान अधिकतम तापमान 44 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। मानसून के दौरान रुक रुक कर होने वाली वर्षा के कारण हवा नम होती है। चित्तौड़गढ़ की यात्रा के लिए ठंड का मौसम सबसे उपयुक्त माना जाता है।
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