हरे-भरे जंगलों और पहाड़ियों से घिरे भेड़ाघाट का मुख्य आकर्षण है धुआंधार जलप्रपात जिसे भेड़ाघाट जलप्रपात (Bhedaghat waterfall) भी कहते हैं। अनोखी छटा वाले धुआंधार झरने से लेकर ऊंची संगमरमर की चट्टानों के बीच से धीरे-धीरे बहती नदी नर्मदा सबका मन मोह लेती है।
भारतवर्ष की “हृदय स्थली” कहे जाने वाले मध्य प्रदेश की जीवन रेखा है पावन नदी नर्मदा और इसी नदी के तट पर स्थित नगर है भेड़ाघाट। भेड़ाघाट जलप्रपात मध्य प्रदेश के जबलपुर शहर से लगभग 25 किलोमीटर दूर स्थित है।
अपनी अनोखी प्राकृतिक सुंदरता, नर्मदा नदी द्वारा बनाए गए धुआंधार जलप्रपात और संगमरमर की अद्वितीय संरचनाओं के कारण भेड़ाघाट हजारों पर्यटकों और प्रकृति प्रेमियों के आकर्षण का मुख्य केंद्र है।
धुआंधार जलप्रपात पर नर्मदा नदी का वेग अत्यंत तीव्र होता है, जलप्रपात के ऊपर के पानी का रंग काला-हरा होता है जलप्रपात पर पानी तेज गति चट्टानों से टकराता है और पानी का रंग बदलकर सफेद हो जाता है, यहां की खूबसूरती और नदी की मंत्रमुग्ध कर देने वाली लहरें और उनकी मनमोहक ध्वनि आपको जीवन भर याद रहेगी।
Bhedaghat waterfall के आस पास की सुन्दर जगहें
पंचवटी (Panchwati)
भेड़ाघाट में धुआंधार जलप्रपात (Bhedaghat waterfal) के के बाद सबसे सुन्दर जगह है पंचवटी, यहां संगमरमर की पहाड़ियों के बीच से नदी नर्मदा बहती हुई दिखाई देती है, यहां पर नौका बिहार मतलब नाव की सवारी का एक अलग ही आनन्द है।
पावन नदी नर्मदा ने यहां की विशाल संगमरमर के पहाड़ों को बड़ी ही खूबसूरती से काटा है संगमरमर की चट्टानों पर बनी आकृतियां ऐसे लगती हैं मानो साक्षात विश्वकर्मा देव जी अपने हाथों से शिल्पकारी की हो। यहां का पानी देखने में पारदर्शी और हरे रंग का बिल्कुल स्वच्छ है, यहां पीने के लिए इसी का प्रयोग किया जाता है।
यहां पर सफेद, काली, हरी, पीली, गुलाबी, धूसर (grey), आसमानी आदि रंगों की बहुत ही ऊंची और खूबसूरत संगमरमर की चट्टानें हैं और इन्ही के बीच से होकर नर्मदा जी बहती हैं। यहीं पर नदी में चट्टानों से निर्मित एक प्राकृतिक भूल-भुलैया भी है।
यहां की एक ओर जो खास बात है वो है यहां के नर्मदेश्वर महादेव जो कि नर्मदा नदी के बीच एक संगमरमर के छोटे से चट्टाननुमा टापू पर विराजमान हैं। शिवरात्रि के समय पर नर्मदेश्वर शिवलिंग का आकार अपने आप बढ़ने लगता है और बाद में अपने आप ही कम हो जाता है।
नर्मदा नदी में में से निकालने वाले शिवलिंग को नर्मदेश्वर शिवलिंग कहते हैं। दुर्गा पूजन के बाद शरद पूर्णिमा के दिन से यहां पर पांच दिन के मेले का आयोजन किया जाता है, इस समय यहां चाँदनी रातों में नाव की सवारी चालू रहती है।
चाँदनी रातों में नर्मदा नदी का चमचमाता पानी संगमरमर की चमकती चट्टानें यहां के वातावरण स्वर्ग में परिवर्तित कर देती हैं। मेले में कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों, बुन्देली लोकगायन और लोकनृत्यों का भी आयोजन किया जाता है।
यहीं पर नदी के किनारे जबालि ऋषि की गुफा है, जिनके नाम पर यहां के शहर का नाम जबलपुर पड़ा। गुफा के समीप ही सुनहरी संगमरमर की चट्टान पर श्वेत रंग का शिवलिंग स्थापित है इस शिवलिंग की स्थापना राजमाता अहिल्या बाई होल्कर ने की थी।
यहां नौका बिहार का समय सुबह 6:00 बजे से शाम 6:30 बजे नर्मदा जी आरती होने तक है नौका बिहार का शुल्क 30 मिनट की सवारी के लिए 50/- रुपये है।
मार्बल वैली (संगमरमर की घाटी / Marble Valley)
Bhedaghat waterfall के पास संगमरमर की चट्टानें प्रकृति का एक अजूबा हैं, प्रकृति ने इसे हजारों वर्षों तक तराशा होगा मार्बल वैली में संगमरमर की चट्टानों की ऊंचाई 100 फुट से अधिक है, यहां कई सारी रंग बदलने वाली चट्टानें भी हैं, सुबह सूरज की लालिमा में इन चट्टानों का रंग लाल और सुनहला, दोपहर में हरा, नीला और श्वेत, शाम को सुनहला, लाल और काला तथा चाँदनी रातों में चमचमाता नीला और श्वेत रंग होता है।
स्वर्ग द्वारी (Swarg Dwari)
स्वर्ग द्वारी एक पहाड़ है जिस पर ऊंचाई से होकर नर्मदा नदी बहती है, स्वर्ग द्वारी की सुंदरता की तुलना स्वर्ग से की जाए तो यह अनुचित नहीं होगा। इस हरे-भरे पहाड़ में आपको सुन्दर चट्टानें, कई प्रकार की वनस्पतियां और बहुत से रंग-बिरंगे पक्षी देखने को मिलेंगे।
पहाड़ के ऊपर जहां नर्मदा नदी बहती है वहां तक पहुंचने के प्रकृति ने पहाड़ को काटकर बड़ा ही सुंदर द्वार बनाया है जिसके कारण इसे स्वर्ग द्वारी कहा जाता है, यहां तक पहुंचने का रास्ता थोड़ा कठिन है परंतु खूबसूरत बहुत है। इस पहाड़ी से सूर्योदय तथा सूर्यास्त की बड़ी ही सुन्दर और अनोखी छटा दिखाई देती है।
स्वर्ग द्वारी पर आपको भीड़ बिल्कुल भी देखने को नहीं मिलेगी, अधिकतर लोगों को तो यह स्थान ज्ञात भी नहीं है और बहुत से लोग दुर्गम रास्ते कारण यहां जाते भी नहीं है परंतु स्वर्ग जैसी खूबसूरत जगह आपको स्वर्ग द्वारी के अतिरिक्त कहीं और देखने को नहीं मिलेगी।
गौ-बच्छा घाट (Gau-Baccha Ghat)
बुन्देली भाषा गौ का अर्थ होता है गाय, और बच्छा कहते है गाय के बछड़े को, इस स्थान पर बहुत सारी गाय और उनके बछड़े पानी पीते हैं जिस कारण इस घाट का नाम गौ-बच्छा घाट पड़ा। यह घाट नर्मदा नदी का ही एक घाट है।
यहां पर एक छोटा स शिवजी का मंदिर और दो झरने हैं। एक झरने के ऊपर बरगद का वृक्ष लगा हुआ है, लोग बरगद की जड़ों पर झूलते हुए झरने में स्नान का आनन्द लेते हैं।
यह स्थान बड़ा ही सुन्दर है यहां पर बिल्कुल भी भीड़-भाड़ नहीं होती है जिसका कारण है यहां तक पहुंचने का रास्ता, यहां पहुंचने के लिए खैरी गाँव के बाद से सड़क बिल्कुल भी अच्छी नहीं है। पहले झरने तक तो आप जैसे तैसे वाहन लेते भी जाओ परंतु दूसरे झरने तक आपको चलकर ही जाना होगा।
Bhedaghat waterfall पर हुई फिल्मों की शूटिंग
भेड़ाघाट जलप्रपात और उसके आस-पास कई बॉलीवुड फिल्मों शूटिंग हुई है।
- प्राण जाए पर वचन न जाए
- खून भरी मांग
- मोहन जोदाड़ो
- अशोक
- जिस देश में गंगा बहती है
- आवारा
इन सब के अलावा Bhedaghat waterfall और भी कई बॉलीवुड फिल्मों और गानों की शूटिंग हुई है।
भेड़ाघाट से जुड़ा इतिहास
तीसरी और चौथी शताब्दी का इतिहास
भेड़ाघाट का इतिहास तो अत्याधिक गहरा है परन्तु वर्तमान में उपलब्ध प्राचीनतम उल्लेख मौर्य साम्राज्य का देखने मिलता है, जिसने चौथी से दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व तक भारतीय उपमहाद्वीप के एक महत्वपूर्ण हिस्से पर शासन किया था और भारतवर्ष को पुनः अखण्ड बनाया था।
मौर्य सम्राट अशोक महान, जो बौद्ध धर्म में शांति और कल्याण को बढ़ावा देने के लिए जाने जाते हैं, उनकी इस क्षेत्र में उपस्थिति के साक्ष्य मिलते हैं। भेड़ाघाट और उसके आसपास चक्रवर्ती सम्राट अशोक महान से संबंधित शिलालेख एवं अन्य शिलालेख पाए गए हैं, जो उस युग के दौरान क्षेत्र के ऐतिहासिक महत्व को उजागर करते हैं।
14वीं से 18वीं शताब्दी का इतिहास
भेड़ाघाट का इतिहास विभिन्न राजवंशों और साम्राज्यों से जुड़ा है। भेड़ाघाट शक्तिशाली गोंडवाना साम्राज्य का हिस्सा था, जो 14वीं से 18वीं शताब्दी तक मध्य भारत में फला-फूला। गोंडवाना साम्राज्य 16वीं और 17वीं शताब्दी के दौरान अपने चरम पर पहुंच गया जब रानी दुर्गावती, बहादुर और कुशल शासक के रूप में सिंहासन पर बैठीं।
रानी दुर्गावती को भारत की सबसे प्रसिद्ध रानियों में याद किया जाता है। रानी दुर्गावती ने मुगल सम्राट अकबर के खिलाफ बहादुरी से लड़ाई लड़ी लेकिन अंततः लड़ाई में वीरगति को प्राप्त हुईं। अपने राज्य की रक्षा में उनकी बहादुरी और बलिदान ने उन्हें भारतीय इतिहास में साहस और वीरता का प्रतीक बना दिया है।
16वीं शताब्दी के बाद का इतिहास
तत्पश्चात इस क्षेत्र ने बुंदेल केसरी महाराज छत्रसाल की तलवारों की खनक भी सुनी, इसके अतिरिक्त इस क्षेत्र ने 18वीं शताब्दी के दौरान मराठों का शासन देखा। पेशवाओं के नेतृत्व में मराठों ने भेड़ाघाट सहित मध्य भारत के विशाल क्षेत्रों पर नियंत्रण स्थापित किया। मराठा साम्राज्य के बाद यह क्षेत्र अंग्रेजों की गुलामी के साथ राजा मर्दन सिंह द्वारा अंग्रेजों को मिली पराजय और कई वीर वीरांगनाओं के बलिदान का साक्षी रहा।
Bhedaghat waterfall तक कैसे पहुंचे
भेड़ाघाट जलप्रपात तक पहुंचने के लिए आप इन परिवहन विकल्पों का अनुसरण कर सकते हैं –
हवाई मार्ग द्वारा:
निकटतम और प्रमुख हवाई अड्डा जबलपुर हवाई अड्डा (JLR) है, जो भारत के प्रमुख शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। हवाई अड्डे से भेड़ाघाट जलप्रपात लगभग 30 किलोमीटर दूर है। हवाई अड्डे से भेड़ाघाट जलप्रपात पहुंचने के लिए आप टैक्सी किराए पर ले सकते हैं या अन्य स्थानीय परिवहन का उपयोग कर सकते हैं।
ट्रेन द्वारा:
जबलपुर जंक्शन (JBP) निकटतम रेलवे स्टेशन है, और यह भारत भर के विभिन्न शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। एक बार जब आप जबलपुर पहुँचते हैं, तो भेड़ाघाट लगभग 20 किलोमीटर दूर है। रेलवे स्टेशन से भेड़ाघाट पहुंचने के लिए आप ऑटो-रिक्शा, टैक्सी किराए पर ले सकते हैं या फिर स्थानीय बसों से भी जा सकते हैं।
सड़क मार्ग द्वारा:
भेड़ाघाट आसपास के विभिन्न शहरों और कस्बों से सड़क मार्ग द्वारा पहुंचा जा सकता है। यदि आप जबलपुर से आ रहे हैं, तो यातायात की स्थिति के आधार पर सड़क मार्ग से लगभग 30 मिनट से एक घंटे तक का समय लगता है। भेड़ाघाट की यात्रा के लिए राज्य सरकार द्वारा संचालित बसें और निजी टैक्सियाँ उपलब्ध हैं।
स्वयं के वाहन से:
यदि आपके पास अपना वाहन है तो आप भेड़ाघाट जलप्रपात तक ड्राइव कर सकते हैं। सड़कें कम भीड़-भाड़ वाली हैं और सुखद यात्रा प्रदान करती हैं।
Bhedaghat Waterfall Map
FAQ (पूंछे जाने वाले प्रश्न)
Bhedaghat waterfall की ऊंचाई कितनी है?
Bhedaghat waterfall की ऊंचाई 30 मीटर है।
भेड़ाघाट जलप्रपात किस नदी पर बना हुआ है?
भेड़ाघाट जलप्रपात नर्मदा नदी पर बना हुआ है।
भेड़ाघाट जलप्रपात देखने जाना चाहिए?
भेड़ाघाट जलप्रपात देखने के लिए अक्टूबर से अप्रैल के बीच का समय सबसे अच्छा है।
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