अजंता की गुफाओं की हैरान कर देने वाली कहानियाँ: अजंता की गुफाएं (Ajanta ki gufayen) भारत में सबसे ज्यादा देखे जाने वाले पर्यटक स्थलों मे से एक हैं, यह गुफाएं एलोरा की गुफाओं से भी अधिक प्राचीन हैं। इन गुफाओं की संरचना, और चित्रकला ने दुनियां को अचम्भे में डाल रखा है।
हरे-भरे जंगल, अपने चारों ओर से हरियाली की चादर ओढ़े खड़ी ऊंची पर्वत श्रृंखलाएं और साथ होकर गुजरती बागोरा नदी ऐसे ही प्राकृतिक सौंदर्य के बीच स्थित हैं अजंता की गुफाएं। यकीन मानिए इस ऐतिहासिक धरोहर स्थल की यात्रा आपको जीवन भर याद रहने वाली है।
महाराष्ट्र के सम्भाजी नगर से लगभग 105 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है “अजंता की गुफाएं”।
इन गुफाओं का नाम अजंता कैसे पड़ा?
इन गुफाओं का नाम अजंता यहां से लगभग 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित अजंठा गांव के नाम पर रखा गया था।
वर्ष 1983 में यूनेस्को द्वारा वर्ल्ड हेरिटेज घोषित अजंता की गुफाएं भारत की सांस्कृतिक व ऐतिहासिक बहुमूल्य धरोहर हैं यदि आप प्राचीन स्थलों यात्रा करने के शौकीन व कला प्रेमी हैं तो भगवान बुद्ध को समर्पित अजंता की गुफाएं आपके लिए अद्भुत पर्यटन स्थल हैं घने जंगलों से घिरे हुए रास्ते का सुहाना सफर, प्राकृतिक सौंदर्य, बहती हुई वगेरा नदी और झरना इस सफर को और अविस्मरणीय बना देते हैं
अजंता की गुफाओं का इतिहास
इन गुफाओं का निर्माण काल लगभग 200 ईसा पूर्व से लेकर 650 ईसवी तक माना जाता है। अतः इन गुफाओं के निर्माण में कई राजसत्ताओं का योगदान रहा है।
जिसमें से सातवाहन, वाकाटक, गुप्त और चालुक्य प्रमुख हैं यद्यपि मौर्य काल से ही पहाड़ों को काटकर गुफा बनाने की परंपरा प्रारंभ हो गई थी किंतु सातवाहन काल आते-आते इसमें अत्याधिक उन्नति हुई।
गुफाओं को ऊपर से नीचे की ओर बनाया जाता था पहले गवाक्ष अर्थात जाने वाली जगह बनाई जाती थी, फिर छत खंभे, दीवारें व मुख्य द्वार बनाया जाता था प्रवेश द्वार को कीर्ति मुख कहा जाता था।
गुफा के सम्मुख चट्टान काटकर जो स्तंभ तैयार किए गए उन्हें कीर्ति स्तंभ कहा गया। अजंता में पर्वतों को काटकर बनाई गई कुल गुफाओं की संख्या 30 है पहले केवल 29 गुफाएं ही ज्ञात थी बाद में पुरातत्व विभाग द्वारा एक नई गुफा की खोज की गई जिसे गुफा संख्या 15A नाम दिया गया है।
अजंता की गुफाओं का नाम अजंता ही क्यों पड़ा
अजंता का नाम अजंता ही क्यों पड़ा इस संबंध में कई मत प्रचलित जिसमें से एक यह है कि बौद्ध ग्रंथ महामायूरी में अजितंजय (अजीतअंजय) नाम के एक गांव का उल्लेख मिलता है जो बाद में अजिंठा और फिर अजंता नाम से लोकप्रिय हो गया।
अजंता की गुफाओं की संरचना
अजंता की गुफाएं अर्धचंद्राकार या घोड़े के नाल के आकार में पूर्व से पश्चिम की ओर फैली हुई हैं। अजंता की गुफाओं को चैत्य और बिहार दो भागों में बाँटा गया है जिनमें चैत्य गुफाओं की संख्या 5 है तथा बिहार गुफाओं की संख्या 25 है।
दरअसल चैत्य का मतलब है चिता सम्बन्धी, शव दाह के पश्चात बचे हुए अवशेषों को जमीन मे गाड़कर उनके ऊपर जो समाधियां बनाई गयीं उन्ही को को चैत्य या स्तूप कहा जाता है।
इन गुफाओं में महापुरुषों के धातु अवशेष सुरक्षित थे अतः चैत्य उपासना के स्थल बन गए। चैत्य गुफाओं की जो संरचना उपलब्ध है उसके अनुसार, चैत्य गुफाओं के आरंभ का भाग आयताकार तथा अंत का भाग अर्द्धवृत्ताकार होता था, इनकी आकृति घोड़े की नाल जैसी होती थी।
अंतिम भाग में ठोस अंडाकार स्तूप बनाया जाता था जिसकी पूजा की जाती थी, चैत्य उपासना बौद्ध धर्म का अभिन्न अंग है। चैत्य गुफाओं के समीप ही बौद्ध भिक्षुओं को रहने के लिए जो स्थान बनाए जाते थे बिहार कहा गया।
इस तरह चैत्य गुफ़ाएं वस्तुतः प्रार्थना स्थल हुआ करती थीं तथा बिहार भिक्षुओं के रहने के लिए बने मठ हुआ करते थे।
अजंता की प्रारंभ में बनी गुफाएं बौद्ध धर्म की हीनयान शाखा से एवं बाद में बनी गुफ़ाएं महायान शाखा से संबंधित हैं।
हीनयान व महायान बौद्ध धर्म के दो संप्रदाय जहां एक ओर में महात्मा बुद्ध को एक महापुरुष माना गया है वहीं दूसरी ओर उन्हें देवता मानकर उयनकी की पूजा की जाती है। हीनयान की साधना पद्धति अत्यंत कठोर है और वह भिक्षु जीवन की हिमायती है वहीं महायान के सिद्धांत सरल व सर्वसाधारण के लिए सुलभ हैं।
अजंता की गुफाओं की चित्रशैली
अजंता की गुफाओं चित्र शैली को तीन भागों में बांटा जा सकता है-
- अलंकारिक
- रुप-वैदिक
- वर्णनात्मक
अजंता की गुफाओं की दीवारों पर चित्रकारों ने अत्यंत सुंदर चित्र बनाएं हैं। सभी गुफाओं में से वर्तमान में सिर्फ 6 गुफाओं के ही भित्ति चित्र शेष बचे हैं। दुर्भाग्यवश बाकी सब नष्ट हो चुके हैं। भित्ति चित्र का अर्थ होता है “Mural painting” जो किसी ठोस संरचना जैसे छत दीवार इत्यादि पर बनाए जाते हैं।
अजंता में भित्ति चित्रों को बनाने हेतु “फ्रेस्को और टेम्परा” दोनों ही शैलियों का उपयोग किया गया है, फ्रेस्को शैली में गीले प्लास्टर पर चित्र बनाए गए हैं तथा चित्रकारी विशुद्ध रंगो द्वारा की गई है। वहीं टेम्परा शैली में सूखे प्लास्टर पर चित्र बनाए गए हैं।
टेंपरा चित्रण की मुख्य विशेषताएं है कि इसमें किसी भी प्रकार के बाइंडिंग मटेरियल जैसे गोंद, अंडे की जर्दी इत्यादि के साथ जलीय रंगों का प्रयोग किया जाता है उस समय चित्र बनाने के पूर्व दीवारों को अच्छी तरह से रगड़ कर साफ किया जाता था फिर शिलाचूर्ण, गोबर, मिट्टी इत्यादि का लेप फेंटकर कर उस पर चढ़ाया जाता था, इसके ऊपर चूने का प्लास्टर किया जाता था।
इस शैली के चित्रों में रेखाएं संतुलित हैं जो की चित्रकारों की कुशलता का परिचायक हैं। चित्रण का माध्यम वनस्पतिक व खनिज रंग थे।
चित्रकारी मे लाल, पीले, काले, सफेद व नीले रंग का प्रयोग होता था ध्यान देने वाली बात यह है कि अजंता के पहले के कहीं के भी चित्रों में नीले रंग का प्रयोग नहीं मिलता है। नीला रंग बनाने के लिए लाजवर्द का प्रयोग होता था जो की फारस देश से मंगाया जाता था।
अजंता की चित्र शैली में विविध प्रकार की फूल-पत्तियों, वृक्षों तथा पशु आकृतियों से अलंकरण का काम लिया गया है किन्नर, नाग, यक्ष, अप्सरा, गंधर्व, आदि पौराणिक आकृतियों का चित्रण स्थान भरने के लिए किया गया है। बुद्ध के जीवन से संबंधित भौतिक घटनाओं का भी चित्रण किया गया है। जातक ग्रंथों से ली गई कथाएं वर्णनात्मक दृश्यों के रूप में उत्कीर्ण की गई हैं।
अजंता की चित्र शैली का विकास शुंग, कुषाण, गुप्त, वाकाटक एवं चालुक्य वंशी इत्यादि राजाओं के काल में हुआ। अजंता के चित्रों में जीवन के भौतिक तथा आध्यात्मिक दोनों ही पक्षों की अभिवृत्ति हुई है, इस चित्र शैली में हर्ष, प्रेम, क्रोध, भय, करुणा आदि भावों की सफल अभिव्यक्ति हुई है।
यह चित्र उस काल की जीवनशैली, वेशभूषा, आभूषणों के साथ मानवीय मूल्यों का निर्देशन करते हैं। भावनाओं को जगह-जगह हाथों की संकेत के माध्यम से भी व्यक्त किया गया है यहां तक कि पशु पक्षियों का भी भावनात्मक चित्रण गया है। इन चित्रों की एक और अनूठी विशेषता प्रत्येक महिला आकृति का केश विन्यास है अर्थात किसी भी चित्र में महिलाओं के केश एक समान नहीं हैं।
वर्तमान में शेष बची हुई गुफाएं और हैरान कर देने वाली जातक कथाएं
आइए अब वर्तमान में शेष बची हुई गुफाओं के बारे में एक-एक करके बात करते हैं।
गुफा संख्या 16
गुफा संख्या 16 की चित्रकारी लगभग पांचवीं शताब्दी के उत्तरार्ध की गई है इस गुफा से प्राप्त लेखों के अनुसार इस गुफा का निर्माण 475 से 500 ईस्वी के मध्य वाकाटक राजाओं ने करवाया था इस गुफा में आज से लगभग 100 वर्ष पूर्व काफी चित्र मौजूद थे परन्तु अब अधिकांश चित्र नष्ट हो चुके हैं। यह एक बिहार गुफा है।
जॉन ग्रिफिथ ने इस गुफा के प्रमुख चित्र बुद्ध उपदेश को प्रकाशित किया महात्मा बुद्ध की प्रलम्ब पाद अवस्था में मूर्ति प्राप्त हुई थी जिसे चैत्य मंदिरम् कहा जाता है।
आइए इस गुफा के कुछ उत्कृष्ट चित्रों को देखते हैं –
बुद्ध उपदेश
इस चित्र में भगवान बुद्ध को स्वर्ग में अपने अंतिम जन्म के लिए अवतरित होते हुए दर्शाया गया है। इसकी बहुत सी आकृतियों नष्ट हो चुकी हैं।
नन्द कुमार का भिक्षु होना
इस चित्र में महात्मा बुद्ध के भाई नंद की कथा को दर्शाया गया।
कथा – जब महात्मा बुद्ध एक बार कपिलवस्तु आए तो वह अपनी पत्नी यशोधरा और बेटे राहुल से मिलने के बाद अपने मौसेरे भाई नंद से मिले और नंद को अपने साथ ले गए तथा उसकी इच्छा के विरुद्ध उसका मुंडन कराकर संघ में शामिल कर लिया यहाँ यही कथा दर्शाई गई है।
एक चित्र में नाई को नंद के सिर के बाल काटते हुए दर्शाया गया है एक मंडप में नंद बैठे हुए चित्रित हैं। भिक्षु बन जाने के बाद नंद अपनी पत्नी के वियोग से व्यथित थे अतः बुद्ध भिक्षु उनका मजाक उड़ाते हैं इस पर महात्मा बुद्ध उन्हें आकाश मार्ग से अनेक सुंदर लोग दिखाने ले जाते हैं ऐसा ही इस चित्र में दर्शाया गया है।
मरणासन्न राजकुमारी
गुफा संख्या 16 का ही एक चित्र मरणासन्न राजकुमारी के नाम से प्रसिद्ध है यह चित्र पति के विरह में मरती हुई एक राजकुमारी का चित्र है। राजकुमारी के चारों ओर परिवार-जन शोकाकुल अवस्था में खड़े हैं, एक सेविका स्त्री हाथ का सहारा देकर राजकुमारी को ऊपर उठाए हुए तथा दूसरी स्त्री पंखा कर रही है।
एक स्त्री अत्यंत भावुक होकर राजकुमारी का हाथ अपने हाथ में पकड़े हुए हैं, राजकुमारी का सिर गिर रहा है, आंखें बंद हो रही हैं तथा वह पीड़ा से कराह रही है।
सफेद टोपी लगाए द्वार पर एक वृद्ध खड़ा है, सामने की ओर दो स्त्रियां हैं जिनमें से एक पारसी टोपी पहने हुए और हाथ में एक ढका हुआ कलश जो लगता है कि कोई औषधि है। विद्वानों ने इस राजकुमारी की पहचान बुद्ध के मौसेरे भाई नंद की पत्नी सुंदरी के रूप में की है कि सुंदरी नंद के भिक्षु बन जाने की सूचना पाकर व्याकुल हैं।
मयदेवी का स्वप्न
माया देवी के स्वप्न के चित्र में अब सिर्फ माया देवी के पैर ही शेष बचे हैं। इस चित्र में शुद्धोधन और माया देवी स्वप्न की चर्चा कर रहे हैं। माया देवी के चारों ओर दासियां बैठी हुई हैं। इसी दृश्य के ऊपर बुद्ध जन्म के कई दृश्य हैं।
सुजाता की खीर
बुद्ध के जन्म लेते ही सात पग चलने की कथा को कमल के सात फूलों के प्रतीक के माध्यम से चित्रित किया गया है।
हस्ती जातक
16 वीं गुफा में ही हस्ती जातक की एक कथा चित्रित है। कथा है कि किसी पूर्व जन्म में बोधिसत्व ने एक शक्तिशाली हाथी के रूप में जन्म लिया एक दिन जंगल में उन्हें कुछ लोगों के कराहने की आवाज सुनाई दी, आवाज का पीछा करते हुए बोधिसत्व ने देखा कि भूख-प्यास से व्याकुल कुछ यात्री दर्द से कराह रहे हैं। ऐसा देख बोधिसत्व बड़े व्याकुल हो उठे। उन यात्रियों की भूख मिटाने हेतु उन्होंने स्वयं के पास वाली पहाड़ी से कूद कर स्वयं मृत्यु का वरण किया।
चार दृश्य
16 वीं गुफा में ही उन चार प्रसिद्ध दृश्यों को दर्शाया गया जिन्हें देखकर बुद्ध के मन में वैराग्य उत्पन्न हुआ था यह दृश्य थे एक वृद्ध, एक रोगी, एक शव और एक सन्यासी को देखना।
महात्मा बुद्ध का गृह त्याग
इस चित्र में महात्मा बुद्ध के महाभिनिष्क्रमण अर्थात गृह त्याग को दर्शाया गया है जिसमें वे अपने पुत्र, पत्नी तथा परिचारकों को छोड़कर जाते हुए दिखाए गए हैं।
इस गुफा के अन्य चित्रों में बुद्ध का विद्या अभ्यास, असित मुनि से वार्तालाप आदि को चित्रित किया गया है।
गुफा संख्या 17
गुफा संख्या 17 का निर्माण वाकाटक राजा हरिषेण के श्रद्धालुओं ने करवाया था। इस गुफा को चित्रशाला कहा जाता है। इस गुफा में विविध प्रकार के चित्र दर्शाए गए जो कि महात्मा बुद्ध के जीवन, महाभिनिष्क्रमण व महापरिनिर्वाण की घटनाओं से संबंधित हैं। जातक कथाएं सबसे अधिक इसी गुफा में चित्रित की गई हैं।
महकपि जातक, छदन्त जातक, महिष जातक इत्यादि का चित्रांकन यहां किया गया है। गुफा संख्या 16 की तरह गुफा संख्या में भी हस्ती जातक कथा वर्णित यह गुफा संख्या 16 से ही मिलती-जुलती इसमें केवल इतना अंतर है कि यहाँ संख्या 17 में एक झरोखे के ऊपर गुलाबी रंग से एक लेख लिखा हुआ।
माता व शिशु का चित्र
गुफा संख्या 17 के समस्त चित्रों में माता व शिशु का चित्रण अत्यंत आकर्षक है। विद्वानों के अनुसार इस चित्र में संभवतः महात्मा बुद्ध की पत्नी यशोधरा अपने पुत्र राहुल को बुद्ध को समर्पित कर रहीं हैं। असीम श्रद्धा व भक्ति भावना से ओतप्रोत माता-पुत्र दोनों एक-टक रूप से बुद्ध को देख रहे हैं।
महाहंस जातक
इस चित्र को वर्णन विधान के कारण अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त है। इस चित्र में महात्मा बुद्ध को एक जन्म में स्वर्ण हंस के रूप में अवतरित होता हुआ दिखाया गया है। कथा यह है कि काशीराज की रानी खेमा ने स्वप्न में एक स्वर्ण हंस देखा, तब रानी के कहने पर काशीराज की आज्ञा पर बहेलियों ने स्वर्ण हंस रूपी बुद्ध को पकड़कर काशीराज के समक्ष प्रस्तुत किया है।
काशीराज की सभा में हंस रूपी बुद्ध राजा को उपदेश देते हैं, काशीराज महात्मा बुद्ध को अपने सिंहासन पर बैठा कर उपदेश ग्रहण करते हैं।
इसके अतिरिक्त इस गुफा के अन्य चित्रों में अप्सराओं व परिचारकों के साथ गंधर्वराज का आकाश में विचरण करना, काले मृग, हाथी व सिंह के शिकार का चित्र, पागल हाथी पर अंकुश, सिंघल वादन, विलासिता, वैराग्य, राक्षसियों का रूप जाल, बंदर और भैंसा, बुद्ध के कपिलवस्तु लौटने का दृश्य इत्यादि को दर्शाया गया है।
गुफा संख्या 9
अजंता की बची हुई गुफाओं में गुफा संख्या 9 व 10 के चित्र सबसे प्राचीन हैं, 9वीं गुफा में 23 खम्बे हैं, इस गुफा में एक विशेष प्रकार की पगड़ी धारण किए हुए पुरुषों का भी चित्रण मिलता है।
उनके गले में मोटी – मोटी मालाएं हैं जिनमें धातु खण्ड गुथे हुए हैं कानों में बड़े-बड़े कर्णफूल जैसे आभूषण, हाथों में मोटे कढ़े, कमर में विशेष प्रकार के कमरबंद है आइए इस गुफा के कुछ प्रमुख चित्रों को देखते हैं।
बैठी हुई स्त्री का चित्र
जॉन ग्रिफिथ ने इस गुफा की एक दीवार का प्लास्टर का एक टुकड़ा छुड़ा कर उसके नीचे एक चित्र खोजा था जो एक बैठी हुई स्त्री का था, इस चित्र को गुफा संख्या 9 का सबसे प्राचीन चित्र माना जाता है।
स्तूप पूजा
स्तूप पूजा गुफा संख्या 9 का एक प्रसिद्ध चित्र है इस चित्र में 16 व्यक्तियों का एक समूह स्तूप की पूजा करते हुए दर्शाया गया है सभी आकृतियों की केश सज्जा अलग-अलग है।
नाग पुरुष
इस चित्र में एक वृक्ष की छांव में दो नाग पुरुषों को बैठे हुए दिखाया गया है नाग राजा को प्रजा की बातें सुनते हुए दर्शाया गया है। इस गुफा के कुछ अन्य चित्र हाथी द्वारा सूंड उठाकर स्तूप को प्रणाम करना तीन छतरी वाला ठोस हरमीका स्तूप, पशुओं को खदेड़ते चरवाहे इत्यादि।
गुफा संख्या 10
गुफा संख्या 10 गुफा संख्या 10 की दीवार पर एक लेख खुदा हुआ है जिससे पता चलता है की इस गुफा का निर्माण सातवाहन काल में हुआ था। इस गुफा में साम जातक व छदन्त जातक से ली गई कथाएं चित्रित हैं। इसमे आम, गूलर व बरगद जैसे चित्रों का भी चित्रण है। गुफा के स्तंभों पर बुद्ध की अनेक आकृतियां बनी हैं जिन पर गांधार शैली का प्रभाव है।
छदन्त राज की रुला देने वाली कथा
छदन्त जातक से संबंधित बहुत से चित्र गुफा संख्या 10 में चित्रित हैं, इन में हाथियों को जंगल में जलक्रीड़ा करते हुए व हाथी द्वारा हथिनियों को सूंड में कमल देते हुए चित्रित किया गया है।
छदन्त जातक की कथा है कि हिमालय के घने जंगलों में सफेद हाथियों की एक छदन्त प्रजाति निवास करती थी इनके 6 दांत होते थे। छदन्त हाथियों के राजा की दो रानियां महासुभद्रा व चुलसुभद्रा थीं। एक दिन गजराज अपनी रानियों के साथ सरोवर में जल क्रीड़ा कर रहे थे तभी गजराज ने खेल-खेल में ही शाल वृक्ष की एक शाखा को अपनी सूंड से झंझोड़ डाला।
संयोगवश वृक्ष के फूल व पराग माहासुभद्रा पर गिरे और वृक्ष की सूखी टहनियां चुलसुभद्रा पर। चुलसुभद्रा ने इस घटना को संयोग न मानकर स्वयं को अपमानित महसूस किया और उसी समय अपने पति का निवास स्थान त्याग कर चली गई, कथा अनुसार चुलसुभद्रा का पुनर्जन्म हुआ और वह विवाहोपरांत वाराणसी की पटरानी बनी।
पुनर्जन्म के बाद भी चुलसुभद्रा की प्रतिशोध की अग्नि शांत न हुई, उसने राजा से छदन्तराज के दांतों को मगवाने का आग्रह किया। राजा ने इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु निषादों की एक टोली बनवाई जिसका नेता सोनुत्तर को बनाया। 7 वर्षों तक इधर-उधर भटकने के पश्चात सोनुत्तर छदन्तराज के निवास स्थान पहुंचा।
उसने वहां पास में ही एक गड्ढा खोदा तथा उसे लकड़ी और पत्तों से ढक कर स्वयं पेड़ों की झुरमुट में छिप गया, छदन्तराज उस गड्ढे के समीप आया तो सोनुत्तर ने उस पर विष में बुझा हुआ बाण चला दिया, बाण से घायल छदन्तराज क्रोधित हो उठा और सोनुत्तर को मारने के लिए दौड़ा किंतु जब उसने सोनुत्तर को संन्यासियों का गेरुआ वस्त्र पहने देखा तो शांत होकर उसे जीवनदान दे दिया।
लज्जित होकर सोनुत्तर ने छदन्तराज को सारी बात बताई कि वह दांतों को प्राप्त करने के उद्देश्य से वहां आया है। छदन्तराज के मजबूत दांत सोनुत्तर नहीं काट सकता था अतः स्वयं छदन्तराज ने अपनी सूंड से दांतों को तोड़कर सोनुत्तर को दे दिया है और इस कारणवश उसकी मृत्यु हो गई। वाराणसी लौटकर सोनुत्तर ने छदन्तराज के दांत रानी को देखकर सारा वृत्तांत सुनाया, छदन्तराज की मृत्यु का समाचार सुनकर रानी को बड़ा गहरा आघात पहुंचा और तत्काल उसकी मृत्यु हो गई।
राजकीय जुलूस का दृश्य
इस चित्र में बोधि वृक्ष की पूजा करने के लिए जा रहे राजा और उसका दल चित्रित किया गया है, इस दल में राजा 8 स्त्रियों के बीच में है जो तेजी से चल रही है इसमें से एक स्त्री कलश उठाए हुए है।
सामजातक काथा का चित्र
इस दृश्य में अंधे माता-पिता की सेवा करने वाले युवक को काशीराज के द्वारा तीर मार देने की कथा को चित्रित किया गया है कि यह कथा श्रवण कुमार की कथा से मिलती-जुलती है।
गुफा संख्या 1
विद्वानों के अनुसार गुफा संख्या 1 के कुछ चित्रों को वाकाटक राजाओं के अंतिम वर्षों में व कुछ चित्रों को चालुक्य राजाओं समय में बनाया गया है। यह एक बिहार गुफा है। इस समय तक बुद्ध की आकृति का अंकन राजसी रूप में होने लगा था और जातक कथाओं के स्थान पर राजाओं के चित्र बनाए जाने लगे। इस गुफा में 14 कोठियां हैं जिसमें कई सुंदर कथाओं का चित्रांकन किया गया है। आइए कुछ चित्रों को देखते हैं –
बोधिसत्व पदमपाणि अवलोकितेश्वर
यह अजंता की सबसे प्रसिद्ध चित्रों में से एक है इसमे बुद्ध के दाएं हाथ में नील कमल और वह कुछ तेड़ी मुद्रा में खड़े हैं, तीन शिखरों वाले मौलि व गले में मोतियों की माला का चित्रांकन भी बड़ी ही सूक्ष्मता व कुशलता के साथ किया गया है। इसी के चित्र के बगल में एक नारी बनी हुई है जिसे काली राजकुमारी कहा जाता है क्योंकि इस चित्र का कुछ भाग काला पड़ गया है। रायकृष्णदास जी का मत है कि सिंदूर से चित्रांकन होने के कारण आकृति के रंग काले पड़ गए हैं वहीं कुछ अन्य विद्वानों का मत है कि जिन चट्टानों पर चित्र बनाए गए हैं उन में गंधक अंश रहा होगा जो जल में धुल कर वर्षाकाल में चित्र के ऊपर चट्टानों से बहकर आया होगा जिस कारण यह चित्र काला पड़ गया होगा।
वज्रपाणि बोधिसत्व
इस चित्र में चित्रकार ने असीम दया व विश्वकरुणा को बड़ी खूबसूरती से दर्शाया है।
मार विजय
इस चित्र में बुध का लगभग 12 फुट ऊंचा व 8 फुट लंबा चित्र उत्कीर्ण है बुध तपस्या में लीन हैं और एक लाल बौना उन्हें डराने का प्रयत्न कर रहा है और एक भयानक आकृति तलवार चला रही है। इस चित्र द्वारा महात्मा बुद्ध की काम भावनाओं पर विजय को दर्शाया गया है।
फारस का राजदूत
पहली गुफा के सबसे सुन्दर चित्रों से एक फारस देश के राजा परवेज खुसरो के राजपूत का चित्र जो कि चालुक्य नरेश पुलकेशियन द्वितीय के दरबार में आया था। इस चित्र में राजा दक्षिणी परंपरा के अनुसार अधोवस्त्र पहने तथा राजपूत को ईरानी टोपी, जामा तथा चुस्त पायजामा पहने हुए चित्रित किया गया है।
मधुपायी दम्पति का चित्रण
इस चित्र में प्रेमी द्वारा प्रेमिका को मधुपात्र देते हुए चित्रित किया गया है। इन चित्रों के अतिरिक्त पहले गुफा में शिवि जातक , चम्पेय जातक, शंखपाल जातक इत्यादि से लिए गए अनेक दृश्यों का आकर्षक चित्रण किया गया।
गुफा संख्या 2
गुफा संख्या 2 का निर्माण 500 से 550 ईस्वी के मध्य माना जाता है कुछ विद्वानों के अनुसार यहां जो चित्र बने हैं वह सातवीं शताब्दी के हैं। गुफा की बायीं भित्ति पर चित्र की एक श्रंखला है जिसमें सबसे पहले किसी राज प्रसाद का चित्रण किया गया है संभवतः यह बुद्ध की माता माया देवी का शयनकक्ष है।
इसके आगे बोधि सत्वों का चित्रण है जिनके सिंहासन के दोनों ओर मकर की आकृतियाँ हैं उनके हाथ धर्मचक्रप्रवर्तन मुद्रा में हैं। आइए कुछ अन्य प्रमुख चित्रों को देखते हैं-
महाहंस जातक
यह चित्र गुफा संख्या 17 के चित्र से मिलता-जुलता है जिसमे हंस के रूप में बोधिसत्व ने काशी के राजा-रानी को धार्मिक उपदेश दे रहे हैं।
माया देवी का स्वप्न
यह चित्र अजंता के उत्कृष्ट चित्रों में आता है इसमें माया देवी अपने शयनकक्ष में सो रही हैं स्वप्न में मायादेवी ने एक श्वेत हाथी को अपने घर में प्रवेश करते हुए देखा था, इस चित्र में सफेद प्रताप कुंज के प्रतीक के रूप में स्वप्न कथा को दर्शाया गया है।
दो बाएं अंगूठे वाली रमणी
राय कृष्णदास जी ने इस आकृति को भगवान बुद्ध की विमाता प्रजापति देवी का माना है। इस चित्र में चित्रकार ने गलती से दोनों पैर की उंगलियां एक जैसी बना दी हैं जिस कारण इस आकृति को दो बाएं अंगूठे वाली रमणी के नाम से जाना जाता है।
तुषित स्वर्ग
इस चित्र में महात्मा बुद्ध को स्वर्ग के सिंहासन पर विराजमान दिखाया गया है उनका एक हाथ धर्म चक्र की मुद्रा में है और मुख के चारों ओर प्रभामंडल है पास में देवी-देवताओं की आकृतियां उत्कीर्ण हैं।
सर्वनाश
इस चित्र में एक वृद्ध भिक्षु को दर्शाया गया है जो कि एक लकड़ी के सहारे खड़ा उसका बायां हाथ थोड़ा चिंता की मुद्रा में है और दाया इस प्रकार घूम गया कि मानो सब कुछ लुट गया हो, “यह सब कुछ मिथ्या है” ऐसे भाव को प्रकट कर रहा है।
झूला झूलती राजकुमारी
इस चित्र में उद्यान में झूला झूलती हुई राजकुमारी इंद्रवती को दर्शाया गया। इस गुफा के अन्य चित्रों में बोधि सत्वों से उपदेश सुनती हुई राज महिषियाँ, बोधिसत्व की पूजा में लीन एक साधक, द्यूत क्रीड़ा का एक चित्र व बिदुर पंडित जातक, क्रूर जातक,हंस जातक तथा और भी अनेक चित्रों को प्रदर्शित किया गया है।
वर्तमान में अजंता की गुफाएं विश्व प्रसिद्ध हैं यूनेस्कों ने इसे विश्व विरासत स्थलों में नामांकित किया है किन्तु इन गुफाओं निर्माण के बाद कालांतर में यह गुफाएं इतिहास में कहीं खो गयीं, संयोगवश इनकी पुनः खोज हुई।
अजंता की गुफाओं की खोज किसने की? इस संबंध में विभिन्न धारणाएं प्रचलित हैं। एक के अनुसार वर्ष 1819 में मद्रास सेना के कुछ यूरोपीय सैनिकों ने अकस्मात् ही शिकार खेलने के दौरान इन गुफाओं का पता लगाया विलियम एरिकशन ने इसका विवरण प्रस्तुत किया।
वर्ष 1824 में जनरल जेम्स अलेक्जेंडर ने रॉयल एशियाटिक सोसाइटी (Royal Asiatic Society) का विवरण प्रकाशित किया जिससे दुनिया को इन अद्भुत गुफाओं की खबर लगी 1844 में ईस्ट इंडिया कंपनी के कहने पर इंग्लैंड की सरकार ने अजंता के चित्रों की प्रतिलिपियाँ बनाने हेतु रॉबर्ट गिल को भारत भेजा।
रॉबर्ट गिल की अध्यक्षता में अजंता के चित्रों की प्रतिलिपियां बनानी शुरू की गईं, 1866 तक 30 चित्र बना डाले जिन्हे क्रिस्टल पैलेस लंदन में प्रकाशित किया गया किंतु दुर्भाग्यवश बाद में क्रिस्टल पैलेस में आग लग गई और में से 25 प्रतिलिपियां जल गईं।
1872 से 1885 के बीच जॉन ग्रिफिथ (John Griffith) ने भी प्रतिलिपियां बनाई किंतु बाद में वे भी दुर्भाग्यवश जल गयीं उन्हें पुनः तीसरी बार लेडी हरिंघम (Lady Haringham) की अध्यक्षता में भारतीय चित्रकारों नंदलाल बोस, समरेंद्र नाथ गुप्त इत्यादि द्वारा प्रतिलिपियाँ बनाई गईं।
वर्ष 1915 में इन प्रतिलिपियों को इंडियन सोसायटी में अजंता प्रेस कोश नाम से प्रकाशित कराया गया। वर्ष 1960 से ही अजंता की गुफाओं की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम हेतु एक यूरेटर की नियुक्ति की गई तथा 1953 में इसे पुरातत्व विभाग के अधीन कर दिया गया 1954 यूनेस्को द्वारा अजंता के चित्रों का संग्रह पेंटिंग्स ऑफ अजंता के नाम से प्रकाशित किया गया।
अजंता की गुफाएं (ajanta ki gufayen) देखने कब जाएं?
अजंता की गुफाओं की यात्रा वर्ष के किसी की महीने में की जा सकती है यह प्रत्येक सोमवार को छोड़कर हफ्ते के सभी दिन खुला रहता है। किन्तु अक्टूबर से फरवरी तक सुहावना ठंडा का मौसम होने की वजह से यहां पर्यटकों का जमावड़ा अधिक होता है।
गर्मियों के दिनों में खासकर अप्रैल, मई और जून के महीनों में भीष्ण गर्मी के कारण इन गुफाओं का विचरण थोड़ा तकलीफ देने वाला हो जाता है। इस समय इन पथरीली, पहाड़ी गुफाओं की तपिश बहुत अधिक बढ़ जाती है।
इन्हे भी पढ़ें >>> एलोरा की गुफ़ाएं
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