Maheshwar : महेश्वर

Maheshwar : ऐसा कहा जाता है कि काशी की धरती मोक्षदायिनी है पर यह धरती काशी से भी कहीं अधिक महिमावान इसी कारण ऐसे गुप्तकाशी के नाम से भी जाना जाता है

नमस्कार दोस्तों आज हम देखेंगे भगवान शंकर की पुत्री नर्मदा नदी के तट पर बसे हुए इस पुरातन नगर महेश्वर को। मध्य प्रदेश के खरगोन जिले में एक छोटा सा प्राचीन नगर है महेश्वर जो पुराणों में माहिष्मती के नाम से प्रसिद्ध है। कहते हैं कि आज से लगभग 4000 वर्ष पूर्व हैहय‌ वंशी राजा माहिष्मान (महिएतम) ने नर्मदा जी के तट पर माहिष्मती यानी महेश्वर को बसाया था।

तब से माहिष्मान, सहस्त्रार्जुन, नीलाध्वज, चेदिवंशी, सुबंधु, शिशुपाल, कलचुरि राजाओं से लेकर देवी अहिल्याबाई होल्कर जैसे कई शासकों ने माहेश्वर के ऐतिहासिक उत्थान पतन में अपना नाम अंकित किया है प्राचीन काल में महेश्वर धार्मिक राजनीतिक शैक्षणिक और आध्यात्मिक गतिविधियों का केंद्र था। मालवा के पास निमाण के इस क्षेत्र को पुराणों में अनूप क्षेत्र कहा गया है जिसकी राजधानी माहिष्मती यानी माहेश्वर थी। सदियों पहले जब भारत में 16 महाजनपद होते थे तब अवंतिका जनपद में दो राजधानियां थीं। उत्तरी अवंतिका में उज्जैन और दक्षिणी अवंतिका में माहिष्मती यानी महेश्वर यहां की नर्मदा नदी के रास्ते नावों से माल भृगु कक्ष यानी भरूच जाता था‌। यहां से बड़े-बड़े जहाजों से आयात एवं निर्यात पश्चिमी देशों तक फैला हुआ था। कहते हैं कि प्राचीन काल से ही वेद पुराण और उपनिषद आदी में महेश्वर का वर्णन देखने को मिलता है। चीनी यात्री ह्वेनसांग से लेकर महाकवि कालिदास की रचनाओं में महेश्वर का महिमा वर्णन किया गया है यदि आप प्राचीन भारत के नक्शे पर ग़ौर करेंगे तो आपको यह बात पता चलेगी कि हमारी सनातन संस्कृति नदियों के किनारे ही फली-फूली है।

नर्मदा जी के पवित्र घाट भृगु, अत्रि, अगस्त्य, कौशिक, कपिल, शांडिल्य, मार्कंडेय, मतंग, जमदग्नि आदि‌ महर्षियों की तपोस्थली रहे हैं। मां नर्मदा की पीली मिट्टी के ढेर पर बना महेश्वर का यह किला कई ऐतिहासिक घटनाओं का साक्षी रहा है चौथी पांचवी शताब्दी के दौरान सुबंधु और महेश्वर नाम की राजाओं द्वारा इसके लिए का निर्माण करवाया गया था।
सदियों पुराने इस किले ने समय की मार और कई आपदाएं को झेला है सन 1733 में मल्हार राव होलकर जी द्वारा बड़े स्तर पर इस किले में पुनर्निर्माण का कार्य किया गया था। यदि आप स्थापत्य कला की दृष्टि से महेश्वर को देखेंगे तो आप यहां के महल, मंदिर, छतरियों से लेकर यहां के सुंदर घाटों को लेकर आपका मन मोहित हो जाएगा।

Maheshwar
Maheshwar

महेश्वर के नर्मदा घाट पर देवी अहिल्याबाई की स्मृति में बना यह मंदिर एवं छतरी आज भी अपनी मूल संरचना को संजोए हुए हैं पच्चीकारी की सुंदर कारीगरी के साथ फूल-पत्तियों, गजराज-गति के साथ राम-कृष्ण लीला और दशावतारों को यहां दीवारों पर बड़ी सुंदरता से उकेरा गया है। यहां की बारीक सजावट और मूर्तियों की सुंदरता उस समय की शिल्पकारी के वैभव को दिखलाती है। भारतीय इतिहास की महान और चरित्रवान महिलाओं की स्मृति में देवी अहिल्या बाई होलकर को सदैव उनके त्याग और समर्पण के साथ-साथ राष्ट्रभक्ति के लिए याद किया जाएगा। महेश्वर किले के पश्चिमी हिस्से में है देवी अहिल्या बाई का राजवाड़ा जहां पहुंचकर आप समय के साथ पीछे चले जाते हैं। पुराने समय में बनी इमारत की बनावट और कारीगरी यहां के वातावरण को अपने आप ही सौम्य कर देती है। भवन के एक कोने में सजी हुई देवी अहिल्याबाई की सभा आज भी जीवंत लगती है ऐसा कहा जाता है कि इसी स्थान पर बैठकर देवी अहिल्या बाई अपनी सभा को संबोधित करती थी सन 1766 में अपने ससुर मल्हार राव होलकर जी की मृत्यु के बाद देवी अहिल्या बाई जी ने महेश्वर का उत्तराधिकार संभाला था और फिर सारे देश को अपनी कर्मभूमि बनाया था। देश के सभी तीर्थों पर घाट मंदिर धर्मशालाएं, कुए, बाबड़ी और वृक्षारोपण आदि जैसे कई सत्कर्म किए थे। राजबाड़े‌‌ के खास हिस्से में एक स्वर्ण झूला है जो 1732 तौला 4 मासा और 1 रत्ती का है। राजवाड़ा परिसर में आज भी कई ऐतिहासिक वस्तुएं हैं जो उस समय की सुंदर झांकी प्रस्तुत करती हैं इन सभी स्थलों के साथ-साथ महेश्वर में और भी कई छतरियां में और मंदिर हैं नर्मदा जी के घाट पर देवी अहिल्याबाई जी की दहनस्थली भी है नर्मदा जी की तेज धारा के बीचो-बीच बाणेश्वर महादेव जी का मंदिर इस नदी की धारा को और भी दिव्य कर देता है।

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